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उ॒त स्तु॒तासो॑ म॒रुतो॑ व्यन्तु॒ विश्वे॑भि॒र्नाम॑भि॒र्नरो॑ ह॒वींषि॑। ददा॑त नो अ॒मृत॑स्य प्र॒जायै॑ जिगृ॒त रा॒यः सू॒नृता॑ म॒घानि॑ ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta stutāso maruto vyantu viśvebhir nāmabhir naro havīṁṣi | dadāta no amṛtasya prajāyai jigṛta rāyaḥ sūnṛtā maghāni ||

पद पाठ

उ॒त। स्तु॒तासः॑। म॒रुतः॑। व्य॒न्तु॒। विश्वे॑भिः। नाम॑ऽभिः। नरः॑। ह॒वींषि॑। ददा॑त। नः॒। अ॒मृत॑स्य। प्र॒ऽजायै॑। जि॒गृ॒त। रा॒यः। सू॒नृता॑। म॒घानि॑ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:57» मन्त्र:6 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:27» मन्त्र:6 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्या क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) पवनों के सदृश मनुष्यो (नरः) अग्रणी ! आप लोग (विश्वेभिः) सम्पूर्ण (नामभिः) संज्ञाओं से (नः) हम लोगों के लिये हम लोगों के (हवींषि) देने योग्य पदार्थों को (ददात) दीजिये (उत) और (स्तुतासः) प्रशंसा को प्राप्त हुए जन देने योग्य द्रव्यों को (व्यन्तु) प्राप्त होवें, हम लोगों और (अमृतस्य) अविनाशी की (प्रजायै) प्रजा के सुख के लिये (रायः) शोभाओं वा लक्ष्मियों को और (सूनृता) धर्म्म से इकट्ठे किये गये (मघानि) धनों को (जिगृत) उगलिये ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो प्रशंसा करनेवाले मनुष्य सम्पूर्ण शब्द और अर्थ के सम्बन्धों से सम्पूर्ण विद्याओं को प्राप्त कर और शोभित होकर प्रजाजनों के लिये सत्य वचन को देते हैं, वे सम्पूर्ण सुख को प्राप्त होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे मरुतो नरो ! यूयं विश्वेभिर्नामभिर्नो हवींषि ददात उत स्तुतासो हवींषि व्यन्तु नोऽस्माकममृतस्य प्रजायै रायस्सूनृता मघानि च जिगृत ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (स्तुतासः) प्राप्तप्रशंसाः (मरुतः) वायव इव मनुष्याः (व्यन्तु) व्याप्नुवन्तु प्राप्नुवन्तु (विश्वेभिः) समग्रैः (नामभिः) संज्ञाभिः (नरः) नायकाः (हवींषि) दातुमर्हाणि (ददात) (नः) अस्माकम् (अमृतस्य) नाशरहितस्य (प्रजायै) प्रजासुखाय (जिगृत) उद्गिरत (रायः) श्रियः (सूनृता) सूनृतानि धर्मेण सम्पादितानि (मघानि) धनानि ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! ये प्रशंसका मनुष्याः समग्रैश्शब्दार्थसम्बन्धैः सर्वा विद्याः प्राप्य शुम्भमाना भूत्वा प्रजाजनेभ्यस्सत्यां वाचं प्रयच्छन्ति ते सर्वे सुखं प्राप्नुवन्ति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जे प्रशंसक संपूर्ण शब्द व अर्थाच्या संबंधांनी संपूर्ण विद्या प्राप्त करून शोभित होतात. प्रजेशी सत्य बोलतात ते संपूर्ण सुख प्राप्त करतात. ॥ ६ ॥